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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 09)










मसूरी का वहीं होटल जहां आज की रात अनि और पीयू ठहरे हुए थे, सुबह के सात बजने वाले थे अनि के रूम का दरवाजा जोर से खटखटाया जा रहा था, जिसे खटखटाने के बजाए बुरी तरह पीटा जा रहा था कहा जाए तो ज्यादा सही होगा, जिसकी वजह से अनि की नींद उससे कोसो दूर भाग खड़ी हुई।

"उठ जा घोंचू..!" अनि के कानों में पियूषा की गुर्राती हुई आवाज आई।

"ओह यार…! इस लड़की को सारे जानवर मुझमें ही क्यों नज़र आते हैं!" अनि लंबी साँस लेकर बड़बड़ाया। "शायद ये उसकी नज़र का दोष हो।"

"उठते हो या कर्नल अंकल को कॉल करूँ?" अनि के कानों में जानी पहचानी सी धमकी गूंजी। इस धमकी ने मानो अनि के कानों में विस्फोट सा किया वह उठकर तेजी से दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा।

'हाँ! हाँ! जानता हूँ क्या सोच रहे हो ये धमकी मुझपे इतना असर क्यों करती है! अरे नही ऐसा कहां है कुछ..अब तो मुझपर दवाओं का भी असर नही होता, वो भी महंगी वाली दवाओं का!   चलो अब तो मेरा एक छोटा सा फ्लैशबैक देख लो… मैं हूँ अनि मेरा मलतब अनिरुद्ध मल्होत्रा! मेरे पिता आर.एम.जी. यानी राम मल्होत्रा गणेश! जानता हूँ, जानता हूँ कि क्या सोच रहे हो यहीं ना कि मेरे पापा के नाम में आगे पीछे दोनों ओर भगवान का नाम क्यों है! इसका आंसर तो मुझे भी नही मिला यार,,  धत्त.. कर दिया ना चौपट,,  देखो हो सकता है ये उनके मम्मी-पापा की चॉइस रही हो। अब मैं ये नहीं बताने वाला मेरे मम्मी पापा कहां मिले, कब और कैसे मिले.. क्योंकि तब तो मैं पैदा ही नही हुआ था न! वैसे भी मैं अपना फ्लैशबैक सुना रहा हूँ, हाँ तो मैं कहाँ था? छोड़ो जहां भी रहा होऊं अब आगे बढ़ते हैं।

मैं अपनी क्लास का सबसे होशियार तेज तर्रार यानी कि स्मार्ट बन्दा था, इतना कि बाकी सबको मुझसे जलन होने लगी और मेरा कोई दोस्त नहीं बना, अगर आप सोंचते हैं इसमें मेरी गलती रहीं होगी तो आप… बिल्कुल गलत सोच रहे है, क्योंकि मैं तो बहुत मासूम था! हाँ, स्मार्ट के साथ मासूम भी! इतना ज्यादा मासूम की मासूमियत नापने के मीटर होता तो शर्म से टूट जाता, बहुत लाजवाब कॉम्बिनेशन हूँ मैं,  यूं कह लो सिंगल पीस! जिसे भगवान ने अपने पड़ोसी को न देकर अपने हाथों से ही बनाया है। फिर मेरी ज़िंदगी में आई आंधी.. अरे अरे गलत जा रहे हो.. कोई गाँधी नही थी वो!

पियूषा के पापा सोमनाथ चौधरी मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त थे! अब ये ऑबियस सी बात है पियूषा उनके साथ ही आयी थी, एकदम क्यूट और स्मार्ट भी! अपन दोनों सेम टाइप के थे, लगता था भगवान के पास थोड़ी और ज्यादा फुर्सत थी इसलिए इसे बना दिया होगा। लेकिन जो भी हुआ अच्छा हुआ, एक मासूम को दूसरा मासूम मिला, एक स्मार्ट को दूसरा स्मार्ट। पर यहीं तो गलती हो गयी पहचानने में, मैं हमेशा से जानता था कि मैं सिंगल पीस हूँ पर नही माना बस इसीलिए भुगत रहा हूँ। एक राज की बात बताऊँ? `लोग हमेशा उतने मासूम नही होते जितना दिखते हैं!` और दूसरी राज की बात ये है कि ये मेरे बारें में नहीं था।

मैंने कई तरह की फाइटिंग टेक्निक, मार्शल आर्ट्स, जूड़ो-कराटे और बहुत सारी कलाएं सीखी। मैं हमेशा खाली टाइम में केमिस्ट्री की प्रयोगशाला में एक्सपेरिमेंट करता रहता। लीजेंड्स वाले काम पता है न कितना मुश्किल है.. खैर जाने दो! बोरिंग लाइफ… पूरी कहानी सुनाने का टाइम ही कहा है? बस मुद्दे की बात समझो..!

एक दिन कॉलेज में एक लफड़ा हुआ, कुछ नकाबपोश डराने धमकाने के इरादे से धमक आये थे। मैंने खींच के एक-एक झपड़ा (थप्पड़) मारा और सबके सब ढेर हो गए। और राज की बात तो ये है कि पियूषा को उस दिन के बारे में अब तक कुछ पता नहीं! उस दिन तो मुझे फूल मालाओं से सजाने की तैयारी की गई मगर अफसोस, मैं कोई मूर्ति नही! इसलिए वहां से भाग खड़ा हुआ, पर मेरी जान नही बख्शी गयी। अगले दिन केमिस्ट्री के सर मिले, उन्होंने कहा बेटे तुम्हारी मेरी केमिस्ट्री अच्छी जमेगी और फिर क्या.. मैं बन गया एक सीक्रेट एजेंट! थोड़ी बेहतर ट्रेनिंग के बाद एकदम परफेक्ट! मेरा कोडनेम है अनि! अच्छा ये तो मेरा निकनेम भी है.. हीहीही मगर फिर गलत समझे आप मेरा कोडनेम है ANII' हां तो क्या हुआ है तो सेम ही ब्लाह ब्लाह ब्लाह… मगर मैं अब इतना भी ना करूँ तो आपको पता कैसे चलेगा कि मैं कितना स्मार्ट हूँ! और पता है हमारी संस्था का नाम क्या है "सीक्रेट वारियर्स" पता नही क्यों मेरे अलावा किसी को अच्छा नाम नहीं मिलता खैर जाने दो, फ्लैशबैक तो फिर कभी सुन लेना अभी मुझे दरवाजा खोलने दो वरना मेरे दिमाग के सारे दरवाजे बंद हो जाएंगे!'

"ओये! कुम्भकर्ण की आत्मा पधार गयी है क्या तुझमें?" पियूषा ने फिर चिल्लाया।

"ओह यार! सिर दर्द कर रहा है! जानती भी हो सिरदर्द को?" अनि दरवाजा खोलकर अपना सिर पकड़ते हुए कहा।

"हाँ बिल्कुल! इतने साल से तुझे झेल ही तो रहीं हूँ!" पियूषा ने हँसते हुए कहा, अनि पागल की तरह उसे घूरने लगा।

"मैं और सिरदर्द! मैं नही मानता, कोर्ट में मानहानि का केस करूँगा तुम पर!" अनि ने उसकी ओर अपना मुँह लपकाते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा।

"जा जा…! बहुत आये तेरे जैसे केस करने वाले.. हुंह!" पियूषा ने उसके दाहिने पैर पर अपना बायां पैर पटकते हुए कहा, अनि जोर से चीख उठा।

"उई माँ!" अनि अब भी चीख रहा था। चीखते हुए दरवाजे पर ही लोटने लगा।

"अनि बात समझो, मैटर सीरियस है!" पियूषा ने उसका कान पकड़कर खींचते हुए कहा।

"कौन सा मटर सीरियस है, अरे भाई कोई सब्जी मत बनाओ! मटर को ICU लेकर जाना है।" अनि जोर से चिल्लाया।

"अनि अभी मजाक नही ओके! ये देखों..!" पियूषा ने उसे आज की ताजी ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाते हुए कहा।

"हे बजरंगी! हे संकटमोचन!" अनि उसका फ़ोन लिए लिए ही पीछे की ओर उछल गया।

"आर्टिकल को ध्यान से पढ़ो बुद्धू! उत्तराखंड अब सेफ नही है, हमें वापिस जाना चाहिए!" पियूषा ने उसे उत्तराखंड की अपडेट्स दिखाते हुए कहा। "और तो और आज मसूरी में भी एक बुरी तरह जला पड़ा ट्रक मिला है, देहरादून में एक सनकी इंस्पेक्टर आया हुआ है जो कि अब सस्पेंड हो चुका है, इन मासूमों की बुरी तरह हत्या कर दी गयी है! राम जानें और क्या होने को बचा है यहां?"

"क्या??" अनि जोरों से चिल्लाया। "जरा फिर से कहना क्या कहा? हम परसों ही तो आये हैं यहां?"

"मगर हम आज ही वापिस जा रहे हैं!" पियूषा ने अनि से झपटकर अपना फ़ोन छीनते हुए कहा। "और तुम मिस्टर जोकर तुम भी साथ चल रहे हो!"

"ह.. हाँ! बिल्कुल तुम्हारे बिना मैं यहां कर भी क्या लूंगा, चलो चलते हैं!" अनि ने खराश कर अपना गला साफ करते हुए कहा।

"पैकिंग करके रेडी हो जाओ जल्दी!"  कहते हुए पियूषा वहां से बाहर निकल गयी।

"हे भगवान क्या मुसीबत है! मेरे ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, काश पीयू को पता होता कि यह सब बस शुरुआत है, आगे बहुत कुछ हो सकता है, क्या करूँ? शायद चीफ से मदद मांगनी चाहिए!" अनि अपने ठुड्डी पर हाथ रखकर खुद से बड़बड़ा रहा था। "नहीं! नहीं! हर बात पर कौन मदद लेता है यार, यहां अपना दिमाग यूज़ करना होगा! जय बजरंग बली.. कुछ तो करो आपका ही सहारा है!"

अनि अभी अपने ख्यालों से बाहर भी न आ पाया था कि उसके बाएँ हाथ के पास से रिंग होने की आवाज होने लगी, वो हैरानी से आँखे बड़ी करते हुए अपने बाएँ हाथ की हथेली और कलाई को देखने लगा।

"शिट यार! अब ये क्या है? इससे भी बुरा होना बचा है कुछ!" अनि झल्ला उठा, अचानक उसके बायीं कलाई पर एक रिस्टवाच उभरने लगी, जिसकी स्क्रीन काफी बड़ी थी। जिसपर चीफ का कॉल आ रहा था।

"हाँ! हेलो! नमस्ते सर जी मैं हूँ हनी बनी सॉरी, मेरा मतलब आपका अनि!" अनि उछलते हुए सोफे पर बैठ गया।

"तुमने आज की न्यूज़ देखी?"  उधर से भर्राया हुआ स्वर उभरा।

"ज..जी! देख ली मेरी राशि में कोई दोष नही है। लड़की मिलने की पूरी संभावनाएं हैं।" अनि ने थोड़ा खुश होते हुए कहा।

"तुम मुझसे ऐसे भद्दे मजाक नही कर सकते अनि!" चीफ का लहज़ा और सख्त हो गया।

"सॉरी सर! आपको पता है न जब मैं बहुत ज्यादा टेंशन में होता हूँ तो कॉमेडी करने लगता हूँ!" अनि ने अपना सिर खुजाते हुए कहा।

"मैं जो पूछा उसका जवाब दो?"

"मैं भी जवाब ही चाहता हूँ चीफ! मगर ये प्याऊ जी मेरा मतलब पियूषा ये इन घटनाओं से इतना घबरा गई है कि अभी ही वापिस लौटना चाहती है।"

"क्या..?"

"मुझे भी लौटना होगा सर! यदि मैं ये नही चाहता कि कोई मेरे 'मैं' होने पर शक करे तो यह करना ही होगा।"

"ये मैं देख लूंगा! तुम बस इतना ध्यान रखना कि इस चीज से केवल देहरादून ग्रसित नही है, मसूरी भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला है। और इस बात की पुष्टि तुम्हें हो चुकी है।"

"मेरे लिए क्या आदेश हैं सर?"

"अब तक तुम अरुण के सस्पेंड होने की बात सुन ही चुके होंगे, मगर याद रखो उसका खून तुमसे भी ज्यादा खौलता है, वो सभी को चुन चुनकर मारेगा, इसके लिए गैरकानूनी तरीके से कानून को हाथ में लेने की कोशिश करेगा! इसलिए जितना हो सके उसके रास्ते में मत आना। तुम्हारे लिए बस इतना ही मिशन है कि अरुण से बचकर इन सबके पीछे छिपे शख्स का पता लगाओ।"

"और पियूषा!"

"इसका मैं बंदोबस्त कर लूंगा!" कहने के साथ ही कॉल कट गया, रिस्टवाच फिर से गायब हो गयी।

"शिट! शिट! शिट! अभी अभी तो मैंने सोचा था इसमे चीफ की हेल्प नही लूंगा। मेरी तो बदकिस्मती ही खराब है।" अनि खुदपर झल्ला रहा था। "एक तो ये एस. डब्ल्यू. वाले पता न मेरे बॉडी में और क्या क्या लगाए हुए हैं! अब क्या करूँ? जो भी हो मैं इस अरुण से नही डरने वाले, अगर ये मेरे रास्ते में आया तो इसे पार करके ही आगे बढूंगा, आखिर उसने उन मासूमों की जान ली है, उसे इसका हिसाब देना ही होगा।" अनि की मुट्ठियां भींच गयी, उसके चेहरे पर कठोरता छा गयी, बच्चों के बारें में सुनकर उसके भीतर क्रोध का ज्वालामुखी फट रहा था।

■■■

"ये नीडल ही मुझे मुख्य अपराधी तक लेकर जाएगा।" अरुण अभी भी उसी घाटी में था। वातावरण में असीम सी शांति थी, चिडियों की चहचहाहट चारों ओर गूंज रही थी। मगर इसके विपरीत अरुण बहुत अधिक गुस्से में था उसकी नसों में उबलता हुआ खून दिखाई पड़ रहा था। वह जल्दी से हेडक्वार्टर जाकर इसे चेक करना चाहता था। उसके दिमाग से अब भी वह दृश्य ओझल नही हो रहा था, उन मासूम बच्चों की चीखें उसके कान को फाड़ती जा रही थीं। अचानक दृश्य बदलने लगे, उसके जीवन के धुंधले दृश्य उभरने लगे वह बहुत अधिक कमज़ोर हो चुका था, कमज़ोरी उसपर हावी होने लगी।

"नहीं! इस बार नही!" अरुण किसी शेर की भांति दहाड़ा। वह तेजी से चलते हुए पहाड़ी की ओर बढ़ गया।

तकरीबन एक घण्टे बाद वह पहाड़ी के शीर्ष पर था! शरीर पर मात्र एक जीन्स पैंट थी जिसपर उन मासूम बच्चों के खून का छींटा पड़ा हुआ था, वह पहाड़ी चढ़ चुका था, अत्यधिक थकान के कारण उसकी साँसे फूलने लगी थीं। उसने उस नीडल को मुलायम पत्तों में लपेटकर जेब में रख लिया था। उसकी धड़कने चार। मीटर दूर से भी आसानी से सुनी जा सकती थीं। वह पहाड़ के दूसरे ओर उतरकर सड़क की ओर बढ़ गया, एक दुकान में टीवी पर चल रही न्यूज़ को देखकर वो ठहर गया। अगले ही पल उसकी आँखें चौड़ी होने लगी, उसकी आंखें सुर्ख लाल हो चुकी थीं, टीवी में अब भी यही खबर जोरो-शोरो से चल रही थी।

"मुझे सस्पेंड कर दिया गया क्यों?" अरुण का दिमाग ठनका, अगले ही पल उसे अपना जवाब मिल गया।

"व्हाट? इन बच्चों की मौत का जिम्मेदार मुझे ठहरा दिया गया? ये कैसी दुनिया है? इतने पुलिसवालों में से किसी की हिम्मत न हुई सच बोलने की? घिन्न आने लगी है मुझे ऐसी दुनिया से जहां हर कोई अपने मतलब के लिए जीता है! मगर ये मेरा पर्सनल इशू है, मुझे किसी वर्दी की जरूरत नहीं!" असमंजस में फंसे हुए अरुण की आँखों में अगले ही पल खून उतर आया, वहां से भागते हुए उसने चुपके से अपनी माप के दो-चार काले कपड़े उठा लिए।

"ये जो कोई है? जिसने ये सब किया है! अरुण बहुत बुरी मौत देगा उसे! लाइफ रुंड कर देगा उसकी!" उसका चेहरा क्रोध से भभक रहा था। वह मसूरी की ओर जाने वाले ट्रक पर चुपके से चढ़कर उसकी छत से चिपक गया और अपने आप को ट्रक के तिरपाल में घुसाने लगा, क्योंकि वह जानता था जल्दी ही उसके नाम पर वारंट जारी किया जाने वाला था।

■■■■■

"हे अनि! गुड मॉर्निंग!" चहकते हुए पियूषा ने कहा! वाइट-पिंक टॉप और ब्लैक जीन्स में वह किसी परी से कम नजर न आ रही थी।

"क्या गुड मॉर्निंग!" अनि ने मुरझाए हुए स्वर में उसे कहा। वह अभी अभी नहाकर बाहर आया था।

"क्या तुम अभी तक तैयार नही हुए हो?" पियूषा चिल्लाई।

"हूँ! आते ही जाना पड़ रहा है किसका होगा?"  वह अब भी बुझे स्वर में बोल रहा था।

"क्या?" पियूषा ने चौंककर पूछा।

"नम!"

पियूषा उसे एकदम देखते हुए घूरने लगी लगी।

"मेरा मतलब मन से ही था यार!" अनि अब जल्दी जल्दी कपड़े बदल रहा था।

"कर्नल अंकल का कॉल आया था!" पियूषा खुशी से बोली, वह काफी उत्साहित नजर आ रही थी और सुबह की तरह परेशान बिल्कुल भी न थी, उसकी परेशानी काफूर हो चुकी थी।

"क..क्या? पप्पा जी का कॉल!" अनि ऐसे उछल पड़ा जैसे उसने भूत देख लिया हो। पियूषा खिलखिलाकर हँस पड़ी।

"हँस लो मेरे हालात पर, तुम क्या समझो जज्बात मेरे!" अगले ही पल अनि मायूस नजर आने लगा।

"वे देहरादून आ रहे हैं, एक मंथ तक मिलिट्री इंस्टीट्यूट में ट्रैनिंग देंगे! और उन्होंने हमें वहीं बुलाया है!" पियूषा बेहद खुशी से बोली वह आज इतना सब होने के बाद भी बहुत खुश नजर आ रही थी।

"वो मारा..!.." अनि उछला अगले ही पल शांत होकर बैठ गया और बेड के नीचे छिपने की कोशिश करने लगा।

"चलो! हमें चलना है जल्दी!" पियूषा ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा। अनि अपने जगह से टस-से-मस न हुआ।

"क्या खाते हो मोटे सांड!" पियूषा उसका हाथ जमीन पर पटकते हुए बेड पर बैठ गयी।

"ओके ठीक है! मैं प्रॉमिस करती हूँ कि अंकल से कोई शिकायत नहीं करूंगी!"  पियूषा अपने गले पर हाथ रखते हुए बोली, मगर अनि को जैसे कोई फर्क ही न पड़ा, वह अब भी जैसे का तैसा पड़ा हुआ था। "अब तो चल घोंचू!" पियूषा उठकर पैर पटकते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी।

"ठीक है मिस प्याऊ जी! करवा ही देते हैं आपका भरत मिलाप! चलिए!" अनि ने बैग उठाते हुए उसे रास्ता दिखाने के झुककर हाथ दरवाजे की ओर बढ़ाते हुए बोला।

"घोंचू कहीं का…!" पियूषा पैर फटकारते हुए आगे बढ़ी, जिससे झुके हुए अनि के मुंह पर सैंडल जोरो से पड़ी।

"ऊई..! देख के चला कर!" अनि जोर से चीखा मगर पियूषा जानती थी कि वो बस नौटंकी कर रहा था।

'चलो चीफ ने अपना काम पूरा किया मुझे अपना करना होगा, अब तो मुझे अपनी सवारी भी चाहिए!' अनि स्वयं से बड़बड़ाते हुए नीचे उतरने लगा।

क्रमशः…….


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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Nov-2021 06:19 PM

बहुत खूबसूरत भाग

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Ramsewak gupta

31-Oct-2021 05:10 PM

Very nice

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Niraj Pandey

30-Oct-2021 07:55 PM

बहुत ही बेहतरीन भाग

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